HINDI INSIGHTS STATIC QUIZ 2020-2021
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Question 1 of 5
1. Question
तंजावुर चित्रकला के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- यह मुख्यतः जन सामान्य के सामाजिक और आर्थिक जीवन को दर्शाती है।
- यह चित्रकला अर्द्ध-मूल्यवान पत्थरों और कांच के अलंकरण के लिए प्रसिद्ध है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही नहीं है/हैं?
Correct
उत्तर: a)
तंजौर चित्रकला एक शास्त्रीय दक्षिण भारतीय चित्रकला शैली है, जिसका उदगम तंजावुर शहर (तंजौर के रूप में प्रतिष्ठित) से हुआ था और यह समीपवर्ती एवं
भौगोलिक दृष्टि से तमिल देश में फैल गयी थी।
इस कला रूप का विकास लगभग 1600 ई. के आसपास हुआ था। यह चित्रकला अधिकांशत: देवी-देवताओं की हैं क्योंकि चित्रकला की यह कला उस समय में समृद्ध हुई जब कई राजवंशों के शासकों द्वारा उत्कृष्ट मंदिरों का निर्माण किया जा रहा था।
Incorrect
उत्तर: a)
तंजौर चित्रकला एक शास्त्रीय दक्षिण भारतीय चित्रकला शैली है, जिसका उदगम तंजावुर शहर (तंजौर के रूप में प्रतिष्ठित) से हुआ था और यह समीपवर्ती एवं
भौगोलिक दृष्टि से तमिल देश में फैल गयी थी।
इस कला रूप का विकास लगभग 1600 ई. के आसपास हुआ था। यह चित्रकला अधिकांशत: देवी-देवताओं की हैं क्योंकि चित्रकला की यह कला उस समय में समृद्ध हुई जब कई राजवंशों के शासकों द्वारा उत्कृष्ट मंदिरों का निर्माण किया जा रहा था।
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Question 2 of 5
2. Question
निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिए:
लोक चित्रकला राज्य / क्षेत्र
- मधुबनी बिहार
- पट्टचित्र आंध्र प्रदेश
- पटुआ पश्चिम बंगाल
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सहीसुम्मेलित है/हैं?
Correct
उत्तर: a)
मधुबनी कला का चित्रण मिथिला क्षेत्र (बिहार) में किया जाता है। इसका चित्रण उंगलियों, टहनियों, ब्रश, नीब-कलम, और माचिस आदि की सहायता से किया जाता है। इसमें प्राकृतिक रंगों और रंजकों का उपयोग किया जाता है और इसकी मुख्य विशेषता इसका ज्यामितीय पैटर्न है।
पट्टचित्र या पाटचत्र, पूर्वी भारतीय राज्यों ओडिशा और पश्चिम बंगाल की लोक चित्रकला है, जो सामान्यतः एक कपड़े पर की जाने वाली एक पारंपरिक स्क्रॉल पेंटिंग है। पट्टचित्रा कला अपने जटिल विवरणों के लिए भी प्रसिद्ध है
इसमें पौराणिक कथाओं और लोककथाओं को उत्कीर्ण किया जाता है।
पटुआ शिल्पकारों का एक समुदाय है जो भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और ओडिशा राज्य और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में स्थित है।
Incorrect
उत्तर: a)
मधुबनी कला का चित्रण मिथिला क्षेत्र (बिहार) में किया जाता है। इसका चित्रण उंगलियों, टहनियों, ब्रश, नीब-कलम, और माचिस आदि की सहायता से किया जाता है। इसमें प्राकृतिक रंगों और रंजकों का उपयोग किया जाता है और इसकी मुख्य विशेषता इसका ज्यामितीय पैटर्न है।
पट्टचित्र या पाटचत्र, पूर्वी भारतीय राज्यों ओडिशा और पश्चिम बंगाल की लोक चित्रकला है, जो सामान्यतः एक कपड़े पर की जाने वाली एक पारंपरिक स्क्रॉल पेंटिंग है। पट्टचित्रा कला अपने जटिल विवरणों के लिए भी प्रसिद्ध है
इसमें पौराणिक कथाओं और लोककथाओं को उत्कीर्ण किया जाता है।
पटुआ शिल्पकारों का एक समुदाय है जो भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और ओडिशा राज्य और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में स्थित है।
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Question 3 of 5
3. Question
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- लाई हारोबा मुख्य उत्सवों में से एक है और आज भी मणिपुर में प्रस्तुत किया जाता है, पूर्व वैष्णव काल से इसका उद्भव हुआ था।
- लाई हरोबा नृत्य का प्रारंभिक रूप है जो मणिपुर में सभी शैलीगत नृत्यों का आधार है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correct
उत्तर: c)
लाई हारोबा मुख्य उत्सवों में से एक है और आज भी मणिपुर में प्रस्तुत किया जाता है, पूर्व वैष्णव काल से इसका उद्भव हुआ था। लाई हारोबा नृत्य का प्राचीन रूप है, जो मणिपुर में सभी शैली के नृत्य के रूपों का आधार है। इसका शाब्दिक अर्थ है- देवताओं का आमोद-प्रमोद । यह नृत्य तथा गीत के एक अनुष्ठानिक अर्पण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मायबा और मायबी (पुजारी और पुजारिनें) मुख्य अनुष्ठानक होते हैं, जो सृष्टि की रचना की विषय-वस्तु को दोबारा अभिनीत करते हैं।
Incorrect
उत्तर: c)
लाई हारोबा मुख्य उत्सवों में से एक है और आज भी मणिपुर में प्रस्तुत किया जाता है, पूर्व वैष्णव काल से इसका उद्भव हुआ था। लाई हारोबा नृत्य का प्राचीन रूप है, जो मणिपुर में सभी शैली के नृत्य के रूपों का आधार है। इसका शाब्दिक अर्थ है- देवताओं का आमोद-प्रमोद । यह नृत्य तथा गीत के एक अनुष्ठानिक अर्पण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। मायबा और मायबी (पुजारी और पुजारिनें) मुख्य अनुष्ठानक होते हैं, जो सृष्टि की रचना की विषय-वस्तु को दोबारा अभिनीत करते हैं।
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Question 4 of 5
4. Question
न्याय-वैशेषिक दर्शन में शामिल हैं
Correct
उत्तर: a)
मीमांसा दर्शन मूलतः निर्वचन, प्रयोग और वेद के संहिता और ब्राह्मण भागों के विषयों के उपयोग का विश्लेषण है।
मीमांसा दर्शन के अनुसार, वेद शाश्वत हैं और सभी ज्ञान के आधार हैं तथा धर्म का अर्थ वेदों द्वारा निर्धारित कर्तव्यों की पूर्ति है।
यह दर्शन न्याय-वैशेषिक दर्शन को समाहित करता है और वैध ज्ञान की अवधारणा पर बल देता है।
Incorrect
उत्तर: a)
मीमांसा दर्शन मूलतः निर्वचन, प्रयोग और वेद के संहिता और ब्राह्मण भागों के विषयों के उपयोग का विश्लेषण है।
मीमांसा दर्शन के अनुसार, वेद शाश्वत हैं और सभी ज्ञान के आधार हैं तथा धर्म का अर्थ वेदों द्वारा निर्धारित कर्तव्यों की पूर्ति है।
यह दर्शन न्याय-वैशेषिक दर्शन को समाहित करता है और वैध ज्ञान की अवधारणा पर बल देता है।
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Question 5 of 5
5. Question
20वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रिटिश राज के दौरान पूरे भारत में विकसित हो रही बंगाल स्कूल ऑफ पेंटिंग के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए।
- इसने आधुनिक पश्चिमी कला रूपों का अनुसरण किया और मौलिक कला के रूप में प्राचीन भारतीय कला को नकार दिया।
- इसने केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित विषयों को चित्रित किया ताकि राष्ट्रवादी चेतना का प्रसार किया जा सके।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा सही है / हैं?
Correct
उतर: d)
चित्रकारों के इस नए समूह ने राजा रवि वर्मा की कला को कृत्रिम और पश्चिमीकरण के रूप में नकार दिया। इसने माना कि इस तरह की शैली देश के प्राचीन मिथकों और किंवदंतियों को चित्रित करने के लिए अनुपयुक्त थी।
इसने अजंता की गुफाओं के लघु चित्रों और भित्ति चित्रों की प्राचीन कला की मध्यकालीन भारतीय परंपराओं से प्रेरणा प्राप्त की। अजंता और बाग, मोगुल, राजपूत और पहाड़ी लघु चित्रों ने इसको आधार प्रदान किया।
रामायण, महाभारत, गीता और पुराणों, कालिदास और उमर खय्याम साहित्य से
प्रेरणा प्राप्त की गई।
आरंभ में इसे ‘भारतीय चित्रकला शैली’ के रूप में भी जाना जाता था। यह भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा थी और रवींद्रनाथ टैगोर इससे संबंधित थे। इसे ई. बी. हेवेल जैसे ब्रिटिश कला प्रशासकों द्वारा भी प्रचारित और समर्थित किया गया था। अंततः इसने आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास को प्रेरित किया।
Incorrect
उतर: d)
चित्रकारों के इस नए समूह ने राजा रवि वर्मा की कला को कृत्रिम और पश्चिमीकरण के रूप में नकार दिया। इसने माना कि इस तरह की शैली देश के प्राचीन मिथकों और किंवदंतियों को चित्रित करने के लिए अनुपयुक्त थी।
इसने अजंता की गुफाओं के लघु चित्रों और भित्ति चित्रों की प्राचीन कला की मध्यकालीन भारतीय परंपराओं से प्रेरणा प्राप्त की। अजंता और बाग, मोगुल, राजपूत और पहाड़ी लघु चित्रों ने इसको आधार प्रदान किया।
रामायण, महाभारत, गीता और पुराणों, कालिदास और उमर खय्याम साहित्य से
प्रेरणा प्राप्त की गई।
आरंभ में इसे ‘भारतीय चित्रकला शैली’ के रूप में भी जाना जाता था। यह भारतीय राष्ट्रवाद से जुड़ा थी और रवींद्रनाथ टैगोर इससे संबंधित थे। इसे ई. बी. हेवेल जैसे ब्रिटिश कला प्रशासकों द्वारा भी प्रचारित और समर्थित किया गया था। अंततः इसने आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास को प्रेरित किया।