विषय – सूची:
सामान्य अध्ययन-II
1. अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न समूहों द्वारा छठी अनुसूची के दर्जे की मांग
2. कर्नाटक में मूल्य निगरानी और संसाधन इकाई की स्थापना
3. नौसेना नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण संगठन (NIIO)
4. पारदर्शी कराधान- ईमानदार का सम्मान
5. अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF)
सामान्य अध्ययन-III
1. भारत में जैविक कृषि
2. लाइन ऑफ़ क्रेडिट
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
1. सार्थक (Sarthak)
2. चर्चित स्थल: भूमध्य सागर
सामान्य अध्ययन-II
विषय: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना।
अरुणाचल प्रदेश के विभिन्न समूहों द्वारा छठी अनुसूची के दर्जे की मांग
(Arunachal groups push for 6th Schedule status)
संदर्भ:
काफी समय से अरुणाचल प्रदेश में दो स्वायत्त परिषदों की स्थापित करने की मांग चली रही है, हाल ही में इन मागों के साथ ही प्रदेश के राजनीतिक दलों तथा अन्य समुदायों ने पूरे अरुणाचल प्रदेश को संविधान की छठी अनुसूची अथवा अनुच्छेद 371 (A) के दायरे में लाने के लिए माग की है।
इनकी मांगे:
वर्तमान में, अरुणाचल प्रदेश को संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत रखा गया है। इसमें छठी अनुसूची की भांति ‘देशज समुदायों’ के लिए विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होते है।
- कई राजनीतिक दलों द्वारा अरुणाचल प्रदेश को छठी अनुसूची में सम्मिलित किये जाने की मांग की जा रही है। छठी अनुसूची में सम्मिलित होने से अरुणाचल के मूल निवासियों को सभी प्राकृतिक संसाधनों पर स्वामित्व अधिकार प्राप्त हो जायेंगे, जबकि अभी इन्हें मात्र संरक्षक के अधिकार प्राप्त हैं।
- राज्य को छठी अनुसूची में शामिल किये जाने पर राज्य को अपने प्राकृतिक संसाधनों पर वैध स्वामित्व अधिकार मिल जायेगा जिससे राज्य की केंद्रीय अनुदान पर निर्भरता काफी हद तक समाप्त होगी तथा आत्मनिर्भर बन सकेगा।
संविधान की छठी अनुसूची
वर्तमान में छठी अनुसूची के अंतर्गत चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा की 10 स्वायत्त जिला परिषदें सम्मिलित हैं।
1949 में संविधान सभा द्वारा पारित छठी अनुसूची, स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद और स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADCs) के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है।
यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत किया गया है।
छठी अनुसूची के प्रमुख प्रावधान
इसके अंतर्गत चार राज्यों- असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है, किंतु इन्हें संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण के अधीन रखा गया है।
- राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
- यदि एक स्वायत्त ज़िले में अलग-अलग जनजातियाँ हैं, तो राज्यपाल ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकता है।
- संरचना: प्रत्येक स्वायत्त जिले में एक जिला परिषद होती है जिसमें 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा नामित किए जाते हैं और शेष 26 वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
- कार्यकाल: निर्वाचित सदस्य पाँच साल के कार्यकाल के लिये पद धारण करते हैं (यदि परिषद को इससे पूर्व भंग नहीं किया जाता है) और मनोनीत सदस्य राज्यपाल के इच्छानुसार समय तक पद पर बने रहते हैं।
- प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र में एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी होती है।
- परिषदों की शक्तियां: ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें अपने अधिकार क्षेत्र के तहत क्षेत्रों का प्रशासन करती हैं। वे भूमि,वन, नहर के जल, स्थानांतरित कृषि, ग्राम प्रशासन, संपत्ति का उत्तराधिकार, विवाह एवं तलाक, सामाजिक रीति-रिवाजों जैसे कुछ निर्दिष्ट मामलों पर कानून बना सकती हैं, किंतु ऐसे सभी कानूनों के लिये राज्यपाल की सहमति आवश्यक है।
- ग्राम सभाएँ: अपने क्षेत्रीय न्यायालयों के अंतर्गत ज़िला और क्षेत्रीय परिषदें जनजातियों के मध्य मुकदमों एवं मामलों की सुनवाई के लिये ग्राम परिषदों या अदालतों का गठन कर सकती हैं। वे उनकी अपील सुनते हैं। इन मुकदमों और मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है।
- शक्तियाँ और कार्य: ज़िला परिषद ज़िले में प्राथमिक स्कूलों, औषधालयों, बाज़ारों, मत्स्य पालन क्षेत्रों, सड़कों आदि की स्थापना, निर्माण या प्रबंधन कर सकती है। यह गैर आदिवासियों द्वारा ऋण एवं व्यापार के नियंत्रण के लिये नियम भी बना सकता है लेकिन ऐसे नियमों के लिये राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है। जिला और क्षेत्रीय परिषदों को भूमि राजस्व का आकलन करने, संग्रह करने तथा कुछ निर्दिष्ट करों को लगाने का अधिकार है।
अपवाद: संसद या राज्य विधायिका के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और स्वायत्त क्षेत्रों पर लागू नहीं होते हैं या निर्दिष्ट संशोधनों और अपवादों के साथ लागू होते हैं।
राज्यपाल स्वायत्त ज़िलों या क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित किसी भी मामले की जाँच और रिपोर्ट करने के लिये एक आयोग नियुक्त कर सकते हैं। वह आयोग की सिफारिश पर ज़िला या क्षेत्रीय परिषद को भंग कर सकता है।
नागालैंड के संबंध में
नागालैंड अनुच्छेद 371 (A) द्वारा शासित होता है। इस अनुच्छेद के अनुसार- नागालैंड विधानसभा द्वारा संकल्प प्रस्ताव पारित किये बिना संसद का कोई अधिनियम राज्य में कई क्षेत्रों में लागू नहीं होगा।
इन क्षेत्रों के अंतर्गत नागालैंड में नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथाओं, नागा प्रथागत कानून और प्रक्रियाओं, सिविल और आपराधिक न्याय के प्रशासन, स्वामित्व और भूमि हस्तातंरण सम्मिलित हैं।
प्रीलिम्स लिंक:
- भारतीय संविधान की 5 वीं और 6 वीं अनुसूची के बीच अंतर
- 5 वीं अनुसूची के तहत राज्यपाल की शक्तियां
- 5 वीं के अंतर्गत क्षेत्रों को शामिल करने अथवा बाहर निकालने की शक्ति किसे प्राप्त है?
- अनुसूचित क्षेत्र क्या हैं?
- वन अधिकार अधिनियम- प्रमुख प्रावधान
- जनजातीय सलाहकार परिषद- रचना और कार्य
मेंस लिंक:
भारतीय संविधान की 5 वीं और 6 वीं अनुसूची के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिए।
स्रोत: द हिंदू
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
कर्नाटक में मूल्य निगरानी और संसाधन इकाई की स्थापना
(Price Monitoring and Resource Unit set up in Karnataka)
संदर्भ:
हाल ही में, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के औषध विभाग के राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority– NPPA) के तत्वावधान में कर्नाटक में मूल्य निगरानी और संसाधन इकाई (Price Monitoring and Resource Unit– PMRU) स्थापित की गयी है।
मूल्य निगरानी एवं संसाधन इकाइयाँ (PMRU) क्या हैं?
PMRU सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत सोसायटी है तथा यह राज्य स्तर पर राज्य औषध नियंत्रक (State Drug Controller) की प्रत्यक्ष देख-रेख में कार्य करेगा। योजना के तहत PMRU के आवर्ती और गैर-आवर्ती दोनों प्रकार के व्यय NPPA द्वारा वहन किये जाते हैं।
कार्य:
- PMRU का प्राथमिक कार्य दवाओं की कीमतों की निगरानी करने, दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने और उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाने में राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA)की सहायता करना है।
- जमीनी स्तर पर NPPA के सहयोगी के रूप में सूचना संग्रह तंत्र के साथ काम करना तथा NPPA और राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों के संबंधित राज्य औषधि नियंत्रकों को आवश्यक तकनीकी सहायता प्रदान करना।
- क्षेत्रीय स्तर पर दवा सुरक्षा (drug security) मजबूत करने और दवाओं को किफायती मूल्य पर उपलब्ध कराने का प्रयास करना।
- दवाओं के नमूने एकत्र करना, डेटा एकत्र करना और उनका विश्लेषण करना तथा औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (Drug Price Control Order- DPCO) के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के लिए दवाओं की उपलब्धता एवं अधिक मूल्य के संदर्भ में रिपोर्ट तैयार करना।
अन्य राज्यों में मूल्य निगरानी और संसाधन इकाई (PMRU)
राष्ट्रीय औषध मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (NPPA) ने उपभोक्ता जागरूकता, प्रचार और मूल्य निगरानी (Consumer Awareness, Publicity and Price Monitoring – CAPPM) नाम की अपनी केंद्रीय क्षेत्र योजना के तहत केरल, ओडिशा, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, नागालैंड, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, आंध्र प्रदेश, मिजोरम और जम्मू और कश्मीर समेत 12 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में PMRU की स्थापना की है।
NPPA की योजना सभी 36 राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में पीएमआरयू स्थापित करने की है।
प्रीलिम्स लिंक:
- PMRU कौन स्थापित कर सकता है?
- PMRU की स्थापना में राज्यों की भूमिका।
- DPCO विनियमन के संदर्भ में NPPA के कार्य।
- भारत के किन राज्यों में PMRU स्थापित हैं।
मेंस लिंक:
मूल्य निगरानी और संसाधन इकाई (PMRU) की भूमिका और कार्यों पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: सांविधिक, विनियामक और विभिन्न अर्द्ध-न्यायिक निकाय।
नौसेना नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण संगठन (NIIO)
(Naval Innovation and Indigenisation Organisation- NIIO)
नौसेना नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण संगठन (NIIO) एक त्रि-स्तरीय संगठन है।
- नौसेना प्रौद्योगिकी त्वरण परिषद (Naval Technology Acceleration Council: N-TAC) नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण दोनों पहलुओं को एक साथ लाएगी और शीर्ष स्तरीय निर्देश उपलब्ध कराएगी।
- N-TAC के तहत एक कार्य समूह परियोजनओं को कार्यान्वित करेगा।
- TDAC– त्वरित समय सीमा में उभरती बाधाकारी प्रौद्योगिकी के समावेशन के लिए एक प्रौद्योगिकी विकास त्वरण प्रकोष्ठ (Technology Development Acceleration Cell– TDAC)का भी सृजन किया गया है।
NIIO के कार्य
नौसेना नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण संगठन (NIIO) आत्म-निर्भर भारत के विजन को ध्यान में रखते हुए रक्षा क्षेत्र में आत्म-निर्भरता के लिए नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण को प्रेरित करने की दिशा में शिक्षा क्षेत्र और उद्योग के साथ परस्पर संवाद हेतु अंतिम उपयोगकर्ताओं के लिए समर्पित संरचनाओं का निर्माण करता है।
पृष्ठभूमि
प्राारूप रक्षा अधिग्रहण नीति 2020 (Draft Defence Acquisition Policy 2020 – DAP 20) में सेना मुख्यालय द्वारा विद्यमान स्रोतों के भीतर एक नवोन्मेषण एवं स्वदेशीकरण संगठन की स्थापना किए जाने की परिकल्पना की गई है।
भारतीय नौसेना के पास पहले से ही एक कार्यशील स्वदेशीकरण निदेशालय (Directorate of Indigenisation– DoI) है तथा इसके साथ ही नवसृजित संरचनाएं वर्तमान में जारी स्वदेशीकरण पहलों को आगे बढाएंगी तथा नवोन्मेषण पर भी ध्यान केंद्रित करेंगी।
प्रीलिम्स लिंक:
- NIIO के बारे में
- इसके कार्य
- ड्राफ्ट रक्षा अधिग्रहण नीति 2020 का अवलोकन
- स्वदेशीकरण निदेशालय के बारे में
स्रोत: पीआईबी
विषय: शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष, ई-गवर्नेंस- अनुप्रयोग, मॉडल, सफलताएँ, सीमाएँ और संभावनाएँ; नागरिक चार्टर, पारदर्शिता एवं जवाबदेही और संस्थागत तथा अन्य उपाय।
पारदर्शी कराधान- ईमानदार का सम्मान
(Transparent Taxation – Honoring the Honest)
संदर्भ:
हाल ही में, प्रधानमंत्री द्वारा 21वीं सदी की कराधान प्रणाली की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ मंच शुरू किया गया है।
इस मंच का उद्देश्य ‘कर प्रणाली में सुधार और सरलीकरण’ करना है।
प्रमुख विशेषताएं
इस मंच में फेसलेस असेसमेंट, फेसलेस अपील और करदाता चार्टर जैसे प्रमुख सुधारों को समाहित किया गया है।
फेसलेस असेसमेंट और करदाता चार्टर तत्काल लागू कर दिया गया है, जबकि 25 सितंबर से देश भर के नागरिकों के लिए फेसलेस अपील की सुविधा भी उपलब्ध हो जाएगी।
इस पहल की आवश्यकता
एक करोड़ 30 लाख की आबादी वाले देश के केवल डेढ़ करोड़ लोग ही आयकर देते हैं जो कि बहुत कम है।
अतः देश के नागरिकों को आत्मावलोकन कर आयकर दाखिल करने के लिए आगे आने और राष्ट्रनिर्माण में योगदान करने की आवश्यकता है। यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में मदद करेगा।
इसके अलावा, देश की कर संरचना में मूलभूत सुधारों की आवश्यकता थी क्योंकि यह स्वतंत्रता पूर्व बनाई गई प्रणाली पर आधारित थी।
स्वतंत्रता के पश्चात से समय में काफी बदलाव हुए हैं, किंतु चली आ रही कर व्यवस्था के मौलिक रूप में कोई बदलाव नहीं आया। इससे पहले की कर प्रणाली की जटिलताओं ने ही इसे नया रूप देना मुश्किल बना दिया था।
मंच का महत्व
देश के ईमानदार करदाता राष्ट्र निर्माण में बड़ी भूमिका निभाते हैं। जब देश के एक ईमानदार करदाता का जीवन आसान हो जाता है, वह आगे बढ़ता है और प्रगति करता है, उसकी प्रगति से देश का भी विकास होता है।’
मौजूदा कर सुधारों का लक्ष्य कर व्यवस्था को निर्बाध, बिना रुकावट, वाला और फेसलेस बनाना है।
शुरू की गई नई सुविधाएं ‘न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन’ प्रदान करने के सरकार के संकल्प का एक हिस्सा हैं।
नवीनतम कर सुधार
नवीनतम कानूनों ने कर प्रणाली में कानूनी बोझ को कम कर दिया है। अब उच्च न्यायालय में कराधान से जुड़े मामलों को दायर करने की सीमा 1 करोड़ रुपये और उच्चतम न्यायालय में दाखिल करने के लिए 2 करोड़ रुपये तक निर्धारित की गई है।
‘विवाद से विश्वास‘ योजना जैसी पहल ने अधिकांश मामलों को अदालत से बाहर निपटाने का मार्ग प्रशस्त किया है।
कर स्लैब को भी मौजूदा सुधारों में युक्तिसंगत बनाया गया है। जहां 5 लाख रुपये तक की आय पर शून्य कर देय है, जबकि शेष स्लैब में भी कर की दर कम हो गई है।
प्रीलिम्स लिंक:
- ‘विवाद से विश्वास’ योजना के बारे में।
- नवीनतम कर सुधार- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष।
- पारदर्शी कराधान मंच का अवलोकन
मेंस लिंक:
‘पारदर्शी कराधान – ईमानदार का सम्मान’ की आवश्यकता और महत्व पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF)
(African swine fever)
संदर्भ:
अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) का संक्रमण मेघालय राज्य में फ़ैल चुका है। इस अति-संक्रामक बीमारी के कारण इसके निकटवर्ती राज्य असम में 17,000 से अधिक सूअरों की मौत हो चुकी है।
पृष्ठभूमि
असम राज्य को कोरोनावायरस के साथ ‘अफ्रीकी स्वाइन फीवर’ (African Swine Fever- ASF) के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है, जिसके कारण असम में 17,000 से अधिक सूअर तथा नजदीकी राज्य अरुणाचल प्रदेश में 4,500 से अधिक सूअरों की मौत हो चुकी है।
भारत में ‘अफ्रीकी स्वाइन फीवर’ (ASF) की सूचना पहली बार असम राज्य में फरवरी माह में प्राप्त हुई थी। माना जाता है कि इस बीमारी का प्रसरण चीन से हुआ है, चीन में वर्ष 2019 के दौरान इस बीमारी से कई जानवरों की मौत हुई थी।
चिंता का विषय
सूअर के मांस की उच्च मांग के कारण पूर्वोत्तर भारत में सुअर पालन रोजगार का एक प्रमुख स्रोत है। केवल असम में ही सात लाख लोग सुअर-पालन से जुड़े हैं, जिससे इनकी सालाना कमाई कम से कम 8,000 करोड़ रूपये होती है।
अफ्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) के बारे में:
- ASF एक अत्यधिक संक्रामक और घातक पशु रोग है, जो घरेलू और जंगली सूअरों को संक्रमित करता है। इसके संक्रमण से सूअर एक प्रकार के तीव्र रक्तस्रावी बुखार (Hemorrhagic Fever) से पीड़ित होते है।
- इसे पहली बार 1920 के दशक में अफ्रीका में देखा गया था।
- इस रोग में मृत्यु दर 100 प्रतिशत के करीब होती है, और चूंकि इस बुखार का कोई इलाज नहीं है, अतः इसके संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र तरीका जानवरों को मारना है।
- अफ्रीकी स्वाइन फीवर से मनुष्य के लिए खतरा नहीं होता है, क्योंकि यह केवल जानवरों से जानवरों में फैलता है।
- FAO के अनुसार, यह रोग अत्याधिक संक्रामक है तथा इसकी सीमापार संक्रमण क्षमता से इस क्षेत्र के सभी देशों में संकट उत्पन्न हो गया है, इसके साथ ही एक बार फिर इस रोग का भूत अफ्रीका से बाहर पाँव पसार रहा है। यह रोग, वैश्विक खाद्य सुरक्षा तथा घरेलू आय के लिए महत्वपूर्ण संकट उत्पन्न कर सकता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- स्वाइन फीवर और स्वाइन फ्लू में अंतर?
- क्या स्वाइन फीवर मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है?
- क्या यह एक वायरल बीमारी है?
- इसकी खोज सबसे पहले कहाँ हुई थी?
- 2020 में कौन से देश इससे प्रभावित हुए हैं?
- क्या इसके खिलाफ कोई टीका उपलब्ध है?
मेंस लिंक:
अफ्रीकी स्वाइन स्वाइन फीवर, लक्षण और इसके प्रसरण पर एक टिप्पणी लिखिए।
स्रोत: द हिंदू
सामान्य अध्ययन-III
विषय: मुख्य फसलें- देश के विभिन्न भागों में फसलों का पैटर्न- सिंचाई के विभिन्न प्रकार एवं सिंचाई प्रणाली- कृषि उत्पाद का भंडारण, परिवहन तथा विपणन, संबंधित विषय और बाधाएँ; किसानों की सहायता के लिये ई-प्रौद्योगिकी।
भारत में जैविक कृषि
संदर्भ:
हाल ही में कृषि मंत्रालय द्वारा ‘जैविक कृषि’ में भारत की स्थिति संबंधी आकंडे जारी किये गए हैं।
COVID महामारी से त्रस्त दुनिया में स्वास्थ्यवर्धक एवं सुरक्षित भोजन की मांग पहले से ही निरंतर बढ़ती जा रही है, अत: इस स्थिति में हमारे किसानों, उपभोक्ताओं और पर्यावरण के लिए जैविक कृषि के क्षेत्र में प्रगति करना काफी महत्वपूर्ण है।
भारत में जैविक कृषि
- भारत, जैविक किसानों की कुल संख्या के मामले में ‘पहले स्थान’ पर है और जैविक कृषि के तहत कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से नौवें स्थान पर है।
- सिक्किम पूरी तरह से जैविक राज्य बनने वाला दुनिया का पहला राज्य बन गया है। इसके साथ ही, त्रिपुरा एवं उत्तराखंड सहित अन्य राज्यों ने भी ठीक इसी तरह के लक्ष्य तय किए हैं।
- पूर्वोत्तर भारत पारंपरिक रूप से जैविक रहा है और यहां रसायनों की खपत देश के बाकी हिस्सों की तुलना में काफी कम है।
- इसी तरह आदिवासी या जनजातीय और द्वीप क्षेत्रों को अपनी जैविक गाथा को निरंतर जारी रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- भारत से किये जाने जैविक निर्यात में मुख्यत: अलसी के बीज, तिल, सोयाबीन, चाय, औषधीय पौधों, चावल और दालें सम्मिलित होती है।
जैविक कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के कार्यक्रम
जैविक खेती अपनाने में किसानों की सहायता करने और प्रीमियम मूल्यों की बदौलत पारिश्रमिक बढ़़ाने तथा रसायन मुक्त खेती को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से दो विशेष कार्यक्रम वर्ष 2015 में शुरू किये गए:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन जैविक मूल्य श्रृंखला विकास (Mission Organic Value Chain Development for North East Region- MOVCD)
- परम्परागत कृषि विकास योजना (Paramparagat Krishi Vikas Yojana- PKVY)
PKVY और MOVCD दोनों ही घरेलू और निर्यात बाजार को लक्षित करते हुए क्रमशः सहभागितापूर्ण गारंटी प्रणाली (Participatory Guarantee System– PGS) और जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम (National Program for Organic Production– NPOP) के तहत प्रमाणीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं।
जैविक कृषि क्या है?
- जैविक कृषि एक ऐसी कृषि प्रणाली होती है, जिसमें रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाओं के स्थान पर जैविक खाद या प्राकृतिक खादों का प्रयोग किया जाता है।
- यह कृषि की एक पारंपरिक विधि है, जिसमें भूमि की उर्वरता में सुधार, जैव विविधता संरक्षण, जैविक चक्र और मृदा की जैविक गतिविधि सहित कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जाता है।
प्रीलिम्स लिंक:
- जैविक कृषि क्या है?
- प्रकार
- शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) क्या है।
- ZBNF बनाम जैविक कृषि के बीच अंतर
मेंस लिंक:
जैविक कृषि के महत्व और विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।
स्रोत: पीआईबी
विषय: उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इनका प्रभाव।
लाइन ऑफ़ क्रेडिट
(What is line of credit?)
संदर्भ:
हाल ही में भारत द्वारा हिंद महासागर में स्थित मालदीव के लिए COVID-19 महामारी के कारण आर्थिक क्षति से निपटने के लिए वायु, समुद्र, अंतरद्वीपीय तथा दूरसंचार आदि क्षेत्रों में नई संपर्क योजना के तहत सहायता की घोषणा की गयी है।
घोषित कार्यक्रम
- वायु परिवहन हेतु ‘एयर बबल’ सेवा
- एक कार्गो फेरी सेवा
- दूरसंचार कनेक्टिविटी के लिए अंतःसागरीय केबल
- माले तथा तीन पड़ोसी द्वीपों विलिंगिली, गुलहिफाहु और थिलाफुशी को जोड़ने वाले ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) के लिए सहायता।
पृष्ठभूमि
भारत सरकार द्वारा मालदीव के लिए ‘ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट’ के बेहतर कार्यान्वयन के लिए 100 मिलियन डॉलर का अनुदान के तौर पर तथा 400 मिलियन डॉलर नई लाइन ऑफ क्रेडिट (Line of Credit– LoC) के वित्तीय पैकेज के जरिये सहायता प्रदान किये जाने की घोषणा की गयी है
ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) मालदीव में अब तक की सबसे बड़ी नागरिक अवसंरचना परियोजना है।
लाइन ऑफ क्रेडिट क्या है?
लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) विकासशील देशों को रियायती ब्याज दरों पर दिया जाने वाला एक ‘सॉफ्ट लोन‘ होता है, जिसे ऋणकर्ता सरकार को चुकाना होता है। लाइन ऑफ क्रेडिट ‘अनुदान’ नहीं होता है।
लाइन ऑफ क्रेडिट भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देने में भी मदद करता है, क्योंकि इसके तहत किये गए अनुबंध की कुल कीमत की 75% सामग्री की आपूर्ति भारत द्वारा की जाती है।
स्रोत: द हिंदू
प्रारम्भिक परीक्षा हेतु तथ्य
सार्थक (Sarthak)
यह एक भारतीय तटरक्षक अपतटीय गश्ती पोत है।
- इसे हाल ही में लॉन्च किया गया था।
- यह पांच अपतटीय गश्ती पोतों (Offshore Patrol Vessel- OPV) की श्रृंखला में चौथा पोत है।
- इसे मैसर्स गोवा शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया है।
चर्चित स्थल: भूमध्य सागर
भूमध्य सागर एक विशाल समुद्र है जिसके उत्तर में यूरोप, दक्षिण में अफ्रीका और पूर्व में एशिया महाद्वीप है।
- भूमध्य सागर पश्चिम में जिब्राल्टर जलडमरूमध्य द्वारा अटलांटिक महासागर को जोड़ता है
- यह पूर्व में डरडेंलीज़ (Dardanelles) तथा बोस्फोरस जलडमरूमध्य के माध्यम से क्रमशः मार्मारा सागर तथा काला सागर को जोड़ता है।
- दक्षिण पूर्व में 163 किमी लंबी कृत्रिम स्वेज नहर भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है।
चर्चा का कारण
हाल ही में खोजे गए गैस भंडारों को लेकर ग्रीस और तुर्की के बीच तनाव जारी है। इसी दौरान फ्रांस ने अस्थायी रूप से पूर्वी भूमध्य सागर में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत कर लिया है।